सचिन मिश्रा 08

Tuesday, August 26, 2008

अवाम को भूल जाएंगे भाई

राजनीति में एक और आए मान्यवर
फिल्मी अंदाज में लांच हुआ करियर

चिरंजीवी ने 'प्रजा राज्यम' पार्टी बनाई

ये भी तो अवाम को भूल जाएंगे भाई

ऐसे वादे करेंगे, जिन्हें पूरा न करे पड़ना

आम जन को चाहे कितना दुख पड़े सहना।

हो गई मुराद पूरी

गुरुजी की कोशिश रंग लाई।
लालू ने अहम भूमिका निभाई।।

और हो गई मुराद पूरी।
आ गई सीएम बनने की बारी।।

न सीएम बनने के लिए गुरुजी चलाते 'कोड़ा'।
तो फिर आज कैसे साथ होते कोड़ा।।

Sunday, August 24, 2008

रिश्ते हैं रिश्तों का क्या

मुशर्रफ ने गुडबाय क्या कर दिया
राष्ट्रपति पद के तलबगारों को बढ़ा
दिया

नहीं चल पा रही गठबंधन सरकार
और बन गए आर-पार के आसार

जरदारी-नवाज के बीच टूट रहा रिश्ता
काम नहीं आ रहा कोई फरिश्ता.

Tuesday, August 19, 2008

हुक्मरान फिर भी न चेते

नोट में लगा खोट का रोग
परेशान हैं देश के सभी लोग


रोग ने इस तरह बनाई पैठ
शातिरों के हो गए हैं ठाठ


आए दिन बरामद हो रही खेपें
और हुक्मरान फिर भी न चेते.

Sunday, August 17, 2008

किसे नहीं है नशा

वैसे तो हर किसी तो किसी न किसी चीज का नशा होता ही है। कोई शौक में नशा करता है, तो कोई देखादेखी में और कोई गम भुलाने के लिए। किसी को सत्ता का नशा है तो किसी को दबंगयी का। आए दिन न जाने कितने घर नशे के खातिर बर्बाद हो रहे हैं।

उसे भी औरों की तरह पड़ गई थी तंबाकू की लत। उसकी कमजोरी यह थी कि वह बिना नशे के नहीं रह सकता था। एक दिन उसकी तंबाकू की पुडि़या कुएं में गिर गई। पुडि़या निकालने के लिए वह कुएं में जा घुसा। लेकिन कुएं में जहरीली गैस चढ़ने से उसकी मौत हो गई। इंसान भूखा तो रह सकता है, लेकिन बिना नशे के लिए नहीं। कभी वह नशे के लिए पत्‍‌नी व बच्चों को मौत के आगोश में सुला देता है तो कभी चोरी आदि भी करने से गुरेज नहीं करता है। हालांकि यह तो सभी जानते हैं कि नशे से उनके शरीर व मस्तिष्क दोनों पर भी असर पड़ता है। फिर भी वह इस जहर का सेवन करते रहते हैं।

खैर उनको तो यह जहर अमृत जैसा लगता है, पर जब वह बीमारियों से जकड़ जाते हैं तो परिजनों का जीना दुष्वार हो जाता है। और कहीं वह अगर उनको छोड़ चल बसे तो उनको शायद सकून मिल जाए, पर परिजनों के सामने मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है। क्या जो नशा नहीं करते हैं वह जिंदा नहीं रहते हैं? वे जिंदा रहते हैं शान से, क्योंकि उनमें दृढ़ इच्छाशक्ति होती है ना कि नशे रूपी बैसाखियों का सहारा।

आज जरूरत है दृढ़ इच्छाशक्ति की, जब तक दृढ़ इच्छा शक्ति का अभाव होगा तब तक नशा छोड़ना मुमकिन नहीं है। तो फिर देर किस चीज की, लीजिए संकल्प कि आज से नशा नहीं करेंगे।